In this poignant video, we shed light on the incredible life and contributions of ranchordas pagi, a true unsung hero of the 1971 Indo-Pak War. While Field Marshal Sam Manekshaw often takes the limelight, this video brings forth the remarkable story of ranchordas pagii, who played a crucial role in India's victory.
Born in Pakistan but with a heart devoted to India, Paggi's journey from being a police guide to his invaluable service during the 1965 and 1971 wars is a testament to his dedication and patriotism. Join us in honoring his memory and discovering the lesser-known chapters of India's military history.
सैम मानेकशॉ हिंदुस्तान के वो पहले व्यक्ति थे जिन्हे फील्ड मार्शल का पद प्राप्त हुआ, युद्ध चाहे 1965 का हो या 1971 की भारत पाकिस्तान की जंग, मानेकशॉ ने अपने कुशल नेतृत्व से भारत की जीत सुनिश्चित की, सेना का इतना बड़ा अधिकारी देश का गौरव साल 2008 में जब अपनी अंतिम साँसे ले रहे थे, तब उनकी ज़ुबान पर एक ही नाम था पागी-पागी, डॉक्टरों से रहा नहीं गया और उन्होंने पूछ ही लिया आखिर कौन है ये पागी?
एक आम आदमी जिसने अपनी आधी ज़िंदगी भेड़ बकरियों के साथ बितायी, लेकिन एक दिन 58 वर्ष की उम्र में उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया और वो बन गए रणछोड़दास रबारी से रणछोड़दास पागी, जिनका नाम देश के नायक रहे मानेकशॉ की ज़ुबान पर उनके अंतिम समय पर था।
आखिर एक आम आदमी इतना ख़ास कैसे हो गया की सेना के सर्वोच्च अधिकारी उनके मुरीद बन गए थे।
पागी का जन्म गुजरात के बनासकांठा ज़िले की सीमा से सटे पाकिस्तान के पथपुर गथरा में हुआ था, लेकिन रणछोड़दास का परिवार विभाजन के बाद भारत आकर बस गया था।
इनकी ज़िंदगी तब बदली जब 58 वर्ष की उम्र में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस गाइड बना दिया
और यहाँ से शुरू हुई असल कहानी, साल था 1965 पाकिस्तान ने गुजरात के कच्छ की सीमा के विद्याकोट थाने पर कब्जा कर लिया था, जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना के लगभग 100 सैनिक शहीद हो गए। तब रणछोड़दास की मदद से वहाँ पर दस हज़ार सेना के जवान पहुँचे और पाकिस्तान के खिलाफ जंग में जीत हासिल की।
कहते हैं रणछोड़दास के पास एक ख़ास हुनर था, जिसके ज़रिए वो ऊंट के पैरों के निशान देखकर ही बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार थे। इंसानों के पैरों के निशान देखकर वो उनके वजन, उम्र और वे कितनी दूर चले गए होंगे, इसका अंदाजा तक लगा लेते थे,
और यही हुनर उनके नाम में पागी शब्द को सार्थक करता था, पग यानी पैर, और पैरो के निशान देख कर जो युद्ध ने नतीज़े बदल दे वो थे रणछोरदास पागी।
अपने इसी हुनर से एक बार उन्होंने रात के अँधेरे में सिर्फ पैरों के निशान देख कर दुश्मन सैनिकों की लोकेशन बताई और साथ ही ये तक बता दिया की उनकी संख्या कितनी है, जिसके बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के 1200 सैनिकों पर हल्ला बोल दिया।
साल 2008 में जब फील्ड मार्शल मानेकशॉ तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती थी तो अक्सर पागी-पागी नाम पुकारा करते थे। डॉक्टरों ने उनसे पूछा कि ये पागी कौन है।
तब उन्होंने आगे की कहानी बतायी थी कि कैसे साल 1971 में भारत ने पाकिस्तान से युद्ध जीत लिया था। मानेकशॉ ने रात के खाने पर रणछोड़दास को बुलाया था, हेलीकॉप्टर में बैठते समय जब रणछोड़दास का झोला चेक किया गया तो उसमें दो रोटियाँ, प्याज और बेसन की सब्जी थी, ये खाना दोनों ने मिलकर खाया।
रणछोड़दास को साल 1965 और 1971 के युद्धों में उनकी भूमिका के लिए उन्हें संग्राम मेडल, पुलिस मेडल और समर सेवा स्टार सहित कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
27 जून 2008 को मानेकशॉ के निधन के बाद 2009 में 'पागी' ने पहले सेना से 'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति' ले ली और 2013 में 112 साल की उम्र में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
रणछोड़दास 'पागी' अपनी देश भक्ति, त्याग और समर्पण के लिए हमेशा याद किए जाएँगे। भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने उनके सम्मान में अपनी एक बॉर्डर पोस्ट का नाम उनके नाम पर रखा है।
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